साल 1989 – बिहार के एक छोटे से गांव से Mathur Ji रोज़गार की तलाश में फरीदाबाद आए। जेब में ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन आंखों में सपने और दिल में मेहनत का जज़्बा था।
फरीदाबाद पहुंचते ही उन्हें एक “आरा मशीन” पर मज़दूर की छोटी सी नौकरी मिली। दिन भर लकड़ी काटना, मशीनों की धूल, शोर – लेकिन Mathur Ji कभी नहीं थके। उन्होंने पूरी लगन और ईमानदारी से काम किया।
समय बदला। साल 2000 के बाद धीरे-धीरे प्लाइवुड की मांग बढ़ने लगी और सॉलिड लकड़ी (टिम्बर) की बिक्री गिरने लगी।
साल 2001 में वह आरा मशीन हमेशा के लिए बंद हो गई। Mathur Ji के पास कोई नौकरी नहीं बची।
कई दिन तक काम की तलाश में भटकते रहे। पैसों की तंगी थी, परिवार का दबाव था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
शुरूआत – एक छोटा बढ़ई का काम
फिर उन्होंने एक छोटा-सा बढ़ई का काम लेना शुरू किया। दरवाज़े बनाना, अलमारी फिट करना, छोटे-छोटे घरों में फर्नीचर लगाना – यही से नई कहानी की शुरूआत हुई।
धीरे-धीरे उनके काम की तारीफ होने लगी। पुराने ग्राहक नए ग्राहक लेकर आए। उन्होंने अपनी खुद की टीम बनानी शुरू की।
अपना घर, अपने सपने
कई सालों की मेहनत के बाद Mathur Ji ने फरीदाबाद में अपना खुद का घर खरीदा। बच्चों को पढ़ाया, अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाया। आज उनके बच्चे इंजीनियर और ऑफिसर हैं।
फरीदाबाद के टॉप कारपेंटर ठेकेदार
आज Mathur Ji को फरीदाबाद में कोई **”बढ़ई” नहीं, एक “कारपेंटर कॉन्ट्रैक्टर” के नाम से जानता है। उनके पास अपनी टीम है, अपने टूल्स हैं, और सबसे बड़ी बात – अपने सपनों को साकार करने का आत्मविश्वास है।
Mathur Ji कहते हैं:
“काम कोई छोटा नहीं होता। अगर आप ईमानदारी से मेहनत करते हैं, तो किस्मत को भी झुकना पड़ता है।”
सीख इस कहानी से:
शुरुआत भले ही छोटी हो, लेकिन सोच और मेहनत बड़ी होनी चाहिए।
हालात चाहे जैसे भी हों, अपने हुनर पर भरोसा रखो।
हर बढ़ई सिर्फ लकड़ी नहीं काटता, वो अपने हाथों से सपनों का घर बनाता है।
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